नवरात्रि 2024 | Navratri 2024 : – भारतीय संस्कृति में आदि शक्ति की उपासना का पर्व

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नवरात्रि भारत के सबसे प्रमुख और पावन त्योहारों में से एक है, जो माँ दुर्गा की आराधना और शक्ति की उपासना के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है – चैत्र नवरात्रि (वसंत ऋतु में) और शारदीय नवरात्रि (शरद ऋतु में)। नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है “नौ रातें”, जिसमें देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

नवरात्रि का महत्व

नवरात्रि केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह आत्मिक शक्ति, धैर्य, और आध्यात्मिक उन्नति का पर्व भी है। इस दौरान भक्त माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करके शक्ति, साहस और ज्ञान की प्राप्ति करते हैं। भारतीय संस्कृति में नवरात्रि का महत्व इतना गहरा है कि इसे केवल एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन में नारी शक्ति के महत्व का प्रतीक माना जाता है।

नवरात्रि के नौ दिन और देवी के नौ रूप

नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। हर दिन एक विशेष देवी की आराधना होती है, जो जीवन में विभिन्न गुणों का प्रतीक हैं:

  1. माँ शैलपुत्री (प्रथम दिन): पर्वतराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री शक्ति का प्रतीक हैं। इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता और शक्ति मिलती है।
  2. माँ ब्रह्मचारिणी (द्वितीय दिन): यह तपस्या और संयम की देवी हैं, जिनकी पूजा से धैर्य और साहस मिलता है।
  3. माँ चंद्रघंटा (तृतीय दिन): शांति और साहस की देवी चंद्रघंटा की पूजा से भय का नाश होता है और भक्तों में आत्मविश्वास आता है।
  4. माँ कूष्मांडा (चतुर्थ दिन): ब्रह्मांड की सृजनकर्ता मानी जाने वाली माँ कूष्मांडा की पूजा से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
  5. माँ स्कंदमाता (पंचम दिन): यह भगवान कार्तिकेय की माता हैं, और इनकी आराधना से संतान सुख और कल्याण की प्राप्ति होती है।
  6. माँ कात्यायनी (षष्ठम दिन): माँ कात्यायनी को शक्ति और साहस की देवी माना जाता है। इनकी पूजा से सभी प्रकार की बुराइयों से मुक्ति मिलती है।
  7. माँ कालरात्रि (सप्तम दिन): यह देवी बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। इनकी पूजा से जीवन में नकारात्मकता का अंत होता है।
  8. माँ महागौरी (अष्टम दिन): यह पवित्रता और शांति की देवी हैं। इनकी पूजा से शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  9. माँ सिद्धिदात्री (नवम दिन): यह देवी सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती हैं। नवमी के दिन इनकी पूजा से साधक को पूर्णता की प्राप्ति होती है।

नवरात्रि के अनुष्ठान

  1. कलश स्थापना: नवरात्रि के पहले दिन घर में कलश स्थापना (घटस्थापना) की जाती है, जो शुभता और सकारात्मकता का प्रतीक है। इसे नवरात्रि की पूजा की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।
  2. उपवास: भक्त नवरात्रि के दौरान उपवास रखते हैं, जिससे शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है। यह उपवास साधारण फलाहार या सात्विक भोजन के रूप में होता है।
  3. कन्या पूजन: अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। छोटी कन्याओं को देवी का रूप मानकर उन्हें भोजन और उपहार दिए जाते हैं।
  4. हवन और आरती: नवरात्रि के अंतिम दिनों में हवन और विशेष आरती का आयोजन किया जाता है। यह अनुष्ठान नकारात्मकता को दूर करने और जीवन में सुख-समृद्धि लाने का एक तरीका है।

नवरात्रि के दौरान विशेष आयोजन

नवरात्रि के दौरान पूरे भारत में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं। गुजरात में प्रसिद्ध गरबा और डांडिया रास नृत्य होते हैं, जहां लोग रात भर माँ दुर्गा की पूजा के साथ नृत्य करते हैं। पश्चिम बंगाल में माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर भव्य पंडालों में दुर्गा पूजा का आयोजन होता है।

विजयदशमी: नवरात्रि का समापन

नवरात्रि का समापन विजयदशमी (दशहरा) के साथ होता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन रावण दहन और माँ दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है, जिससे यह संदेश मिलता है कि जीवन में बुराई पर अच्छाई की हमेशा जीत होती है।

नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व

नवरात्रि केवल देवी दुर्गा की पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक आत्मिक यात्रा है, जिसमें हम अपनी आंतरिक शक्ति और साहस को पहचानते हैं। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें अपने भीतर की शक्ति को जागृत करना चाहिए।

समाप्ति

नवरात्रि एक ऐसा पर्व है, जो हमें नारी शक्ति, श्रद्धा, और भक्ति का अद्वितीय संगम दिखाता है। माँ दुर्गा की कृपा से यह पर्व हमें जीवन में आने वाली सभी बाधाओं से लड़ने की शक्ति और साहस प्रदान करता है। नवरात्रि के इन नौ दिनों में शक्ति की उपासना और साधना करने से हमें आध्यात्मिक बल और आंतरिक शांति मिलती है।

माँ दुर्गा जी की आरती | MAA DURGA ARTI

ॐ जय अम्बे गौरी..

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।

तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।

उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।

रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।

सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।

कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।

धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।

मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।

आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों ।

बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,

भक्तन की दुख हरता । सुख संपति करता ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी ।

मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।

श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।

कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥

ॐ जय अम्बे गौरी..

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।

Disclaimer
इस लेख में दी गई सभी जानकारियाँ धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित हैं। इनका उद्देश्य केवल पाठकों को सामान्य जानकारी प्रदान करना है। कृपया किसी भी धार्मिक अनुष्ठान, पूजा विधि, या उपवास संबंधी निर्णय लेने से पहले अपने पंडित, गुरु, या किसी विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें। लेखक या प्रकाशक द्वारा दी गई जानकारी की सटीकता या पूर्णता की गारंटी नहीं दी जाती है।


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